Sunday, November 27, 2011

यह तो कुमार विकल को भी नहीं पता था

हम नाहक़ दोस्तों को कोसते रहे

यह तो कुमार विकल को भी ठीक ठीक नहीं पता था
कि वह पीता क्यों था
हम नाहक़ दोस्तों को कोसते रहे
पीने के वजहें सबसे अधिक तब मिलती हैं
जब पास कोई न हो
अनजान किसी ग्रह से वायलिन की आवाज़ आती है
आँखों में छलकने लगता है जाम
उदास कविताएँ लिखी जाती हैं
जिन्हें बाद में सजा धजा हम भेज देते हैं
पत्रिकाओं में
कोई नहीं जान पाता
कि शब्दों ने मुखौटे पहने होते हैं
मुखौटों के अंदर
रो रहे होते हैं शब्द ईसा की तरह
सारी दुनिया की यातनाएँ समेटे।

लिख डालो, लिख डालो
बहुत देर तक अकेलापन नहीं मिलेगा
नहीं मिलेगी बहुत देर तक व्यथा
जल्दी उंडेलो सारी कल्पनाएँ, सारी यादें
टीस की दो बूँदें सही, टपकने दो इस संकरी नली से
लिख डालो, लिख डालो।
बहुत देर तक बादल बादल न होंगे
नहीं सुनेगी सरसराहट हवा में बहुत देर तक
जल्दी बहो, निचोड़ लो सभी व्यथाएँ, सभी आहें
अभ्यास ही सही, झरने दो जो भी झरता स्मृति से
लिख डालो, लिख डालो।

लाल्टू
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जलसा 2010 (अधूरी बातें)
में संकलित

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