Sunday, November 27, 2011

देवी प्रसाद मिश्र की एक कविता

बीज

मैंने प्लेट में टमाटर के ऐसे टुकड़े देखे
जो मैंने पहले कभी नहीं देखे थे मतलब
कि ऐसे कि जैसे ताज़ा ख़ून से भरे हों
उनका वलय भी बड़ा था उनके बीज भी
मोतियों सरीखे थे मेरे मेज़बान ने उन
टुकड़ों को मेरी प्लेट में रख दिया मैंने
महसूस किया कि इस आदमी के हाथ
बहुत बड़े हैं इतने कि वह मेज़ के आरपार
अपना हाथ ले जा सकता है और चाहे तो
मेरी गर्दन भी पकड़ सकता है वह इतना लंबा है
कि मेरे सिर पर अपनी प्लेट रख कर
अपना खाना खा सकता है मैंने टमाटर
के टुकड़ों को थोड़ा दहशत के साथ देखते
हुए कहा कि आप के हाथ बहुत लंबे हैं तो
उसने थैंक यू कहा - यह लगा कि उसने
मुझे डाँटा मतलब कि उसकी कृतज्ञता में
सपाटता थी और उसने बहुत बेरुख़ी से
बताया कि वह एक मल्टीनेशनल में
सेल्ज़ में है और फिर वह मुझे इस तरह
देखता रहा कि जैसे वह यह बताना चाहता
हो कि मेरे कितने कम दाम लगेंगे

जिस टमाटर से यवतमाल के किसान का ताज़ा ख़ून
जैसा रिस रहा था उस टमाटर के बारे में
उसने बताया कि यह जेनेटिकली मॉडीफ़ाइड बीज
वाला टमाटर है जिसके बीज अमेरिका में
तैयार किये गये हैं जान यह पड़ता था कि
बहुत लंबे हाथों वाला वह आदमी भी ऐसे ही
किसी बीज से पैदा हुआ था जिसे विकसित
करने में अमेरिका ने बरसों मदद की हो

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जलसा 2010 (अधूरी बातें) में संकलित

1 comment:

  1. हां ये कविता मैंने जलसा में ही पढ़ी थी, एक बार को झकझोर देती है ये, फिर शांत भी कर देती है।

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