Monday, January 16, 2012

ग़ाज़ियाबाद के बिल्डरों तो आप जानते ही हैं

पत्रिका

ग़ाज़ियाबाद के बिल्डरों तो आप जानते ही हैं
उनमें से एक ने राजनीतिक सांस्कृतिक पत्रिका निकाली

जिसमें विचारधाराओँ वाले लोग
कविताएँ वग़ैरह समीक्षाएँ वग़ैरह विचार वग़ैरह लिखने लगे

पत्रिका निरंतर घाटे में निकल रही थी
लेकिन मालिक को घाटा नहीं हो रहा था वह
नौकरशाहों और मंत्रियों के पास जाया करता था
और पत्रिका के अंक दिखाया करता था

मतलब कि वह बिना यह कहे ताक़तवरों को
डराया करता था कि ये बड़े बड़े विचारक आप पर
बहुत विश्लेषणात्मक तरीक़े से लिख सकते हैं
मतलब कि आप के धंधों पर और आपके घपलों पर
मतलब कि आप भी हमें देश को उजाड़ने दें कि जैसे
हम आपको हर तरह के पतन का मौक़ा दे रहे हैं
नहीं तो जैसा कि मैंने बिना कहे कहा कि
ये बड़े बड़े लोग आप पर बहुत
विश्लेषणात्मक तरीक़े से लिख सकते हैं
और जो अपना विश्लेषण कम करते हैं
और जो आप ही देखिये हम जैसे अपराधियों के पैसे से
कितनी अच्छी और मानवीय पत्रिका निकालते रहते हैं

− देवी प्रसाद मिश्र

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जलसा २०१० ('अधूरी बातें') में प्रकाशित

3 comments:

  1. बहुत अच्छी कविता है.

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  2. पहले भी पढ़ी थी, बहुत अच्छी कविता है।

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