tag:blogger.com,1999:blog-2093136828763934109.post5406367506182480255..comments2017-05-01T19:02:55.880-07:00Comments on Jalsa जलसा: कुछ बातें / अवाँ गार्दिज़्म - 2. संगीत और भौतिकीअसद ज़ैदीhttp://www.blogger.com/profile/11665764714056419361noreply@blogger.comBlogger1125tag:blogger.com,1999:blog-2093136828763934109.post-58526795721946596092010-11-10T01:06:59.339-08:002010-11-10T01:06:59.339-08:00लाल्टू और शिवप्रसाद जोशी ने मामले को भौतिकी में ढक...लाल्टू और शिवप्रसाद जोशी ने मामले को भौतिकी में ढकेल कर ठीक किया। मैं उनके कहे में कुछ जोड़ना चाहता हूं जो हो सकता है थोड़ा भटका सा भी लगे। इशारा मैं यह करना चाहता हूं कि बहुत दिन पहले की बात नहीं है जब ब्रह्मांड की व्युत्पत्ति के कारनामे में हॉकिंग ईश्वर की भूमिका को नकार नहीं पा रहे थे। लेकिन अब अपने हाल के विमर्शों में वह ईश्वर की कोई भूमिका होने से इंकार कर रहे हैं । ऐसा वह इति सिद्धम वाले अंदाज में मान रहे हैं । मतलब कि एक ऐसा प्रत्यय जो तर्क और तथ्यों की सरणि से आयत्त हो न कि किसी तरह के अज्ञेयत्व की कोख से यानी कि जिसे हासिल करने की दार्शनिक सुविधा न उठायी गयी हो। कॉस्मॉस में किसी ईश्वरीय भूमिका को न देख पाना खास तौर पर एक वैज्ञानिक द्वारा जो आसानी से ईश्वरविहीन होने के लिये उतावला नहीं था हमारे समय की सबसे बड़ी परिघटना है जिसको इसी रूप में देखने वाले कम हैं । मेरे खयाल से यहां सत्य को नैतिक और दार्शनिक रूप में ही नहीं पाया गया है बल्कि एक ऐसे प्रत्यय के तौर पर जहां कुछ उपकल्पनाएं हैं लेकिन रास्ता विज्ञान का भी है । तो हॉकिंग मानते हैं कि कॉस्मॉस खुद को पैदा कर सकने में सक्षम है । इस तरह वह ईश्वर का निरसन करते हैं । कहना यह है कि हॉकिंग ने जो हासिल किया है वह भले ही अवांगार्द लगे वह हासिल किया गया है एक पद्धति के ज़रिये । लेकिन उस पद्धति में ही शायद अवांगार्द का दुस्साहस रहा हो जो बेशक हमेशा न दिखे । मैं समझ रहा हूं कि मैं किस पतली धार पर चल रहा हूं । तो कई बार अवांगार्द की विलक्षणता दिख जाती है लेकिन कई बार वह किसी का धैर्य बनकर भी अंतर्लय की तरह मौजूद रहती है । कविता में भी हो सकता है ऐसा होता हो, होता ही है । <br />देवी प्रसाद मिश्र Anonymousnoreply@blogger.com